Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -17-Oct-2022...सती प्रथा...

आंखों में हजारों सपने लिए आज संतो विवाह के मंडप में बैठी थीं...। शादी तो उसकी बाल्यकाल में ही तय कर दी गई थीं... पर आज बारह वर्ष बाद उसका गोना हो रहा था..।

ससुराल में जाने की खुशी से ज्यादा बारह वर्ष का लंबा इंतजार अपने हमसफ़र ठाकुर रायचौधुरी से मिलने की थीं...। 
सारे विधि विधान से संतो का विवाह अच्छे से संपन्न हुआ...। 

अपने गाँव से दूसरे गाँव में ठाटबाट से बग्घी में बैठकर आठ घंटे की लंबी दूरी तय कर संतो ससुराल पहुंची..। 

अपने स्वभाव और काम काज में निपुण संतो ने जल्द ही अपने पति के साथ साथ सभी का दिल जीत लिया था..। 

लेकिन विधी का विधान तो कुछ ओर ही लिखकर बैठा था...। आठ माह ही हुवे थे संतो के विवाह को की एक रोज़ हवेली की सीढ़ियों से उतरते हुवे ठाकुर साहब का पैर फिसला और सिर पर लगी गहरी चोट की वजह से तत्काल ही उनका निधन हो गया...। 


अब वक्त था उस समय की प्रथा को अंजाम देने का... सती प्रथा का...। 

विधवा हुई स्त्री को अपने पति की चिता के साथ अपनी देह भी त्यागी थीं... ये थीं उस वक्त की प्रचलित सती प्रथा...। जिसकी शुरुआत भारतीय इतिहास की माने तो 510 ईसवी के आसपास हुई थीं...। 
चाहे अनचाहे उस वक्त में ये प्रथा अपने जोर पर थीं... जिसके फलस्वरूप इंकार या विरोध करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था...। आखिर कार संतो ने भी इस प्रथा को स्वीकार करते हुए ठाकुर की चिता पर बैठकर अपनी देह का भी त्याग कर दिया..। 


ना जाने कितनी सदियों तक यह प्रथा भारत देश में अपने चरम पर थीं...। 
लेकिन आज ही के दिन यानि 4 दिसम्बर 1829 को लार्ड विलियम बेंटिक भारत के गवर्नर जनरल थे.... उन्होंने राजा राममोहन राय की मदद से एक कानून पास करवा कर इस प्रथा के अलावा बाल विवाह और कन्या भूर्ण हत्या पर भी रोक लगवाई...। 

भारतवर्ष में ऐसी बहुत सी प्रथाएं हैं.... जिसका अंत करना एक सही कदम था....। 

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6 Comments

Bahut khub likha h

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Palak chopra

06-Nov-2022 01:02 AM

Shandar 🌸🙏

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Mithi . S

05-Nov-2022 02:32 PM

Very nice

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